कोटद्वार- कण्वाश्रम

कण्वाश्रम

कोटद्वार, गढ़वाल का एक प्रसिद्ध शहर है और यह उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी ज़िले के अंतर्गत आता है। खोह नदी के किनारे बसे होने के कारण इसे खोह द्वार कहा जाता था, जो कालांतर में कोटद्वार के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कोटद्वार नगर खोह, मालिनी और सुखरो नदियों से घिरा हुआ है, यहीं से पहाड़ों और गढ़वाल की रौनक शुरू होती है।

कोटद्वार से थोड़ी दूरी पर मालिनी नदी के तट पर कण्वाश्रम स्थित है, जिसके बारे में अभिज्ञान शकुंतलम और कई धार्मिक ग्रंथो जैसे महाभारत में लिखा गया है। राजा भरत की जन्मस्थली के रूप में विख्यात कण्वाश्रम की महत्ता और सांस्कृतिक विरासत की ओर ध्यान 1955 में प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की रूस यात्रा पश्च्यात गया। प्रधानमंत्री की रूस यात्रा के दौरान, रूस में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें अन्य प्रस्तुतियों के साथ रूसी कलाकारों ने कालिदास के ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ पर आधारित एक बैले नृत्य प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम की सम्पति के पश्च्यात जब अतिथि से अभिज्ञान शाकुन्तलम् में उल्लेखित कण्वाश्रम कहाँ स्थित है ? प्रधानमंत्री को इस संबंध में कोई जानकारी नहीं थी। भारत लौटने के उपरांत उन्होंने उत्तर प्रदेश तत्कालीन मुख्यमंत्री सम्पूर्णानन्द जी को कण्वाश्रम की खोज करने का दायित्व सौंपा। इतिहासकारों तथा अनेक विद्वानों से चर्चा कर प्राचीन ग्रंथों ग्रंथों, पुराणों, ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक प्रमाणों और शोधों के आधार पर यह प्रमाणित किया गया कि पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार शहर में मालिनी नदी के किनारे स्थित है जिसका उल्लेख कालिदास द्वारा कृत अभिज्ञान शाकुन्तलम् में भी मिलता है।

महाभारत में उल्लेखित प्रसंग के अनुसार एकदा महर्षि विश्वामित्र घोर तपस्या में लीन थे। उनकी तपस्या से विचलित होकर देवराज इंद्र ने स्वर्ग से अप्सरा मेनका को तपस्या को भंग करने के लिए भेजा। महर्षि विश्वामित्र की तपस्या में मेनका विघ्न्न डाल देती है और दोनों को पुत्री की प्राप्ति होती है। मेनका पुत्री को मालिनी नदी के किनारे पर छोड़कर वापस स्वर्ग चली जाती है। आश्रम क्षेत्र से सटे नदी के किनारे पर प्रातः काल में स्नान करने गए कण्व ऋषि का ध्यान एक नन्हीं बच्ची की ओर जाता है जो शकुं चिड़ियों से घिरी हुई होती है। तभी ऋषि कण्व उस बच्ची को गोद में उठाकर अपने आश्रम ले जाते है जंहा उस बच्ची का नाम शकुन्तला रखा जाता है और ऋषि कण्व द्वारा उसका पालन-पोषण किया जाता है।

एक दिन हस्तिनापुर के राजा दुश्यंत अपनी सेना समेत आखेट पर निकलते है जंहा उनकी भेंट शकुन्तला से होती है। वह शकुन्तला से आकर्षित होकर उनसे गंधर्व विवाह का प्रस्ताव रखते है जो शकुन्तला स्वीकार कर लेती है। शकुन्तला और दुश्यंत के द्वारा उत्पन्न पुत्र भरत कहलाता है जिसके नाम से हमारा देश भारत खण्ड के रूप में जाना जाता है। इसलिए कण्व आश्रम को सम्राट भरत की जन्म स्थली कहा जाता है। हर वर्ष वसंत पंचमी के दिन कण्व आश्रम में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। कण्व आश्रम एक पौराणिक एवं एतिहासिक धरोहर है।

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